प्राचीन ग्रंथों का संरक्षण और संपादन
दुर्लभ प्राकृत और जैन ग्रंथों का अध्ययन, संपादन और पुनर्मुद्रण करके उन्हें भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना।
प्राकृत भारत की एक प्राचीन और समृद्ध भाषा है, जिसने जैन, बौद्ध तथा लोक साहित्य को अद्वितीय अभिव्यक्ति दी है। prakritseminar.com का उद्देश्य प्राकृत भाषा, साहित्य और संस्कृति से जुड़ी शोध गतिविधियों को एक मंच प्रदान करना है। यह वेबसाइट प्राकृत सम्मेलनों की जानकारी, शोध पत्रों का आदान-प्रदान, विद्वानों के संवाद तथा शैक्षिक संसाधनों की एक समर्पित डिजिटल प्रणाली है। हमारा विश्वास है कि प्राचीन ज्ञान परंपराएँ जब आधुनिक तकनीक से जुड़ती हैं, तो नवाचार और शोध की नई दिशाएँ खुलती हैं।
हमारा आमंत्रण है – प्राकृत भाषा से जुड़े सभी शोधार्थियों, अध्यापकों और प्रेमियों को कि वे इस मंच का हिस्सा बनें और प्राकृत ज्ञान की ज्योति को आगे बढ़ाएँ।
Shrut Ratnakar invites scholars to present research at the 4th National Prakrit Seminar on Sthānāṅga Sūtra (Ṭhāṇaṃ), to be held 3–5 October 2025 in Agra under the guidance of Bahushrut Munishri Jaymuniji. This year’s focus is on additional, previously unexplored topics from the text. Abstracts (200–300 words) are due by 15 August 2025.
श्रुत रत्नाकर ट्रस्ट की स्थापना वर्ष 2000 में प्राचीन भारतीय ग्रंथों के संरक्षण, अध्ययन और प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से की गई थी। यह संस्था विशेष रूप से जैन साहित्य, प्राकृत भाषा, और प्राचीन भारतीय लिपियों के अध्ययन और संपादन में सक्रिय भूमिका निभा रही है। ट्रस्ट का दृष्टिकोण न केवल शास्त्रों के पठन-पाठन को पुनर्जीवित करना है, बल्कि आधुनिक समाज को प्राचीन ग्रंथों की प्रासंगिकता से भी जोड़ना है।
दुर्लभ प्राकृत और जैन ग्रंथों का अध्ययन, संपादन और पुनर्मुद्रण करके उन्हें भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना।
विद्यार्थियों, शोधार्थियों और जिज्ञासुओं के लिए लघु एवं दीर्घकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
ब्राह्मी, नागरी आदि प्राचीन लिपियों को पढ़ना-लिखना सिखाकर ग्रंथों के मूल स्वरूप को समझने में सहायक बनाना।
अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांत जैसे मूल जैन सिद्धांतों को समाज में जागरूकता के साथ फैलाना।
जैन धर्म के सभी समुदायों, साधु-साध्वियों और विद्यार्थियों को एक साझा मंच पर लाना।
ऑडियो-वीडियो, PowerPoint प्रस्तुतियों और डिजिटल पुस्तकों के माध्यम से ग्रंथों को जनसुलभ बनाना।
500 से अधिक प्रतिभागियों की सक्रिय उपस्थिति और सहभागिता
सेमिनारों का आयोजन तीन अलग-अलग ऐतिहासिक एवं शैक्षणिक स्थलों पर
अब तक 3 सफल राष्ट्रीय प्राकृत सेमिनारों का आयोजन
देशभर से 50 से अधिक प्रख्यात जैन एवं प्राकृत विद्वानों की भागीदारी
विभिन्न विषयों पर प्रस्तुत किए गए 120 से अधिक उत्कृष्ट शोध-पत्र
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